हिन्दू समाज उपनिषदों और गीता में वर्णित आत्मा की अमरता को स्वीकार करता है ।
गीता में कहा गया है-
आत्मा अजर-अमर है, Aatma Kabhi Nhi Marti, Aatma Azar - Amar Hai
गीता में कहा गया है-
आत्मा अजर-अमर है, Aatma Kabhi Nhi Marti, Aatma Azar - Amar Hai
वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरो पराणि ।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा- न्यन्यानि संयाति नवानि देही ।
जीर्ण वस्त्र को जैसे तजकर नव परिधान ग्रहण करता नर ।
वैसे जर्जर तन को तजकर धरता देही नवल कलेवर ।
नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक: ।
न चैनं क्लेदयन्तापो न शोषयति मारुत: ।
शस्त्रादि इसे न काट पाते जला न सकता इसे हुताशन ।
सलिल प्रलेपन न आर्द्र कर खा न सकता प्रबल प्रभंजन।
**Suryabansh Lal Nirala**
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा- न्यन्यानि संयाति नवानि देही ।
जीर्ण वस्त्र को जैसे तजकर नव परिधान ग्रहण करता नर ।
वैसे जर्जर तन को तजकर धरता देही नवल कलेवर ।
नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक: ।
न चैनं क्लेदयन्तापो न शोषयति मारुत: ।
शस्त्रादि इसे न काट पाते जला न सकता इसे हुताशन ।
सलिल प्रलेपन न आर्द्र कर खा न सकता प्रबल प्रभंजन।
**Suryabansh Lal Nirala**
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