इल्जाम कैसे दूं जिंदगी को |
अकल मेरी मुझको ही जख्म दे गयी |
इससे पहले की पहचान होती |
आँसुवों ने धो दिया उनको |
मैंने खुद ही गले लगाया है बेबसी को |
इल्जाम कैसे दूं जिंदगी को' |
कल्पना के कागज पे एक तस्वीर मैंने खिंची थी |
कल्पना भी मेरी थी और तस्वीर में मेरा था |
पर कलम किसी और की मांगी थी मैंने |
मैंने ही हकीकत समझ लिया दिल्लगी को |
इलजाम कैसे दूं जिंदगी को |
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